
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को कटरा से श्रीनगर के लिए वंदे भारत एक्सप्रेस की शुरुआत करते हुए ना सिर्फ रेलवे ट्रैक खोल दिया, बल्कि सीधा कूटनीतिक ट्रैक भी पाकिस्तान की ओर मोड़ दिया।
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उद्घाटन के मंच से उन्होंने पहलगाम हमले को लेकर पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा किया और कहा कि यह हमला सिर्फ इंसानियत पर ही नहीं, बल्कि “कश्मीरियत” पर भी हमला था — और इसका मक़सद भारत में दंगे भड़काना था।
पाकिस्तान की तड़प – “ये सब भ्रामक है!”
मोदी के बयान के कुछ घंटों बाद ही इस्लामाबाद से विदेश मंत्रालय का प्रेस रिलीज़ आया — जिसमें प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणियों को “निराधार, झूठा और भटकाने वाला” बताया गया।
पाकिस्तान का कहना है कि:
“इस तरह के बयान सिर्फ मानवाधिकार उल्लंघनों से अंतरराष्ट्रीय ध्यान हटाने की कोशिश हैं।”
और यह भी कि:
“भारत कोई सबूत नहीं देता, सिर्फ पाकिस्तान को बदनाम करता है।”
सबूत माँगने वाला खुद कब जिम्मेदारियों से भागा?
पाकिस्तान की ‘सबूत माँगने की परंपरा’ कोई नई नहीं। जब-जब भारत आतंकी घटनाओं के लिए पाकिस्तान की ओर इशारा करता है, इस्लामाबाद से जवाब आता है – “प्रूफ दो!”
लेकिन सवाल ये है कि 26/11 से लेकर पुलवामा और अब पहलगाम – हर बार प्रूफ किसके बगीचे में गिरते हैं?
कश्मीर का नाम लेकर संयुक्त राष्ट्र की चौखट
पाकिस्तान ने इस बयान में एक बार फिर वही पुराना पिटारा खोला — “कश्मीर एक अंतरराष्ट्रीय विवाद है, और इसका हल UNSC के प्रस्तावों से होना चाहिए।”
कटरा से वंदे भारत की रफ्तार जहां कश्मीर को कनेक्टिविटी दे रही है, वहीं पाकिस्तान की प्रतिक्रिया पुरानी कैसेट की तरह बज रही है।
प्रधानमंत्री मोदी का बयान राजनीतिक हो सकता है, लेकिन पहलगाम में मारे गए निर्दोषों की चीखें राजनीति नहीं जानतीं।
और अगर आतंक का रास्ता बार-बार एक ही दिशा से आता है, तो उंगलियां भी वहीं उठेंगी। जब शब्दों से ज़्यादा सच्चाई गोलियों और धमाकों में दिखे — तब पाकिस्तान की सफाई केवल कूटनीतिक स्क्रिप्ट बनकर रह जाती है।